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Monday, October 10, 2016

जग में तुझ सी माँ ना होगी

मैं चंचल मैं पापी भोगी
जग में  तुझ सी माँ ना होगी ।
दर्शन बिन रोती हैं अंखिया
पूरी कब अभिलाषा होगी ॥

मन्त्र न  जानूं , यन्त्र न जानूं,
ध्यान न जानूं, तन्त्र न जानूं ।
तेरी मुद्रायें न जानूं,
व्याकुल हो विलाप ना जानूं।
तेरे पीछे चाहूं चलना
पर अनुचर के गुण न जानूं।
कलेश हरो माँ , अवगुण हर लो
जग में तुझ सी माँ न होगी ॥

मैं पूजन अर्चन न जानूं
प्रायश्चित क्रंदन न जानूं।
त्रुटियों की मैं खान हूँ माता ,
ध्यान तुम्हारा ना कर पाता ।
तेरे द्वार नहीं आ पाया ,
लग चरणों से रो न पाया ।
फ़िर भी मुझको तूने सम्भाला
जग में तुझ सी माँ न होगी ॥

मंत्र तेरा जो श्रवण करे तो
मूर्ख मधुर वक्ता हो जायें ।
दीन स्वर्ण वैभव पा जायें
भीरू पुरुष निर्भय हो जायें ।
एक मन्त्र का असर है ऐसा
जप तप का फल होगा कैसा ?
मुझको भी स्वीकार करो माँ
जग में तुझ सी माँ न होगी ॥

मोक्ष न  माँगू , धन न माँगू
इस जग का वैभव न माँगू ।
तेरा नाम बसे  जीवन में
केवल इतना सा वर माँगू ।
तड़प रहा हूँ बिलख रहा हूँ
भव सागर में भटक रहा हूँ ।
मैं चंचल मैं पापी भोगी
जग में तुझ सी माँ न होगी ॥

- दीपक श्रीवास्तव 

1 comment:

Vikram Pratap Singh said...

बहुत सुगढ़ और भक्तिभाव से ओत प्रोत